सराडा उपखंड क्षेत्र में यह एक ऐसा गांव मात्र गांव है जिसमें हजारों की संख्या में महुआ के पेड़ लगे हुए हैं
महुआ बीनते हुए |
: करीब 4000 आबादी वाले इस गांव के एक भी घर ऐसा नहीं होगा जिसमें महुआ का पौधा नहीं होगा यह गांव कई फलों में बिखरा हुआ है पहाड़ी इलाका है जहां पर क्षेत्र जहां लोगों के आजीविका का मुख्य साधन मात्र खेती के साथ-साथ वृक्ष से ही अपनी जीविका चलाते हैं यहां के लोगों द्वारा महू के फूलों को एकत्रित करने की परंपरा है सुबह उठते ही परिवार के सभी सदस्य अपने इस काम में लग जाते हैं दोपहर होते-होते लो पुन: घर लौट जाते हैं इन फूलों को लोग बेचकर अपने अन्य आवश्यक सामग्री का खरीदारी करते हैं ग्रामीणों ने बताया कि इन फूलों के उपयोग शराब बनाने के साथ-साथ ढेकली नामक भोजन बनाया जाता है जिसको बड़े चाव के साथ खाया जाता है
ग्राम सरपंच राजेंद्र कुमार मीणा ने बताया कि हमारी ग्राम पंचायत के लोगों द्वारा पेड़ पौधों को बेहद प्रेम भावना से रखा जाता है खासकर महू के पेड़ों को परिवार की तरह पाला जाता है गांव के लोगों के फलदार पौधे आजीवक जीविका के रूप में काम आते हैं कहीं परिवार है जिनके पास सैकड़ों की संख्या में महुआ के व अन्य फलदार पेड़ लगा रखे हैं |
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